प्रयागराज, जिसे प्रयाग या तीर्थराज प्रयाग या इलाहाबाद के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख शहर है। यह हिन्दू धर्म में पवित्र मानी जाने वाली और उत्तरी भारत की भौगोलिक रूप से भी प्रमुख, गंगा और यमुना नदियों के मिलन स्थल पर बसा नगर है। नदियों के मिलन स्थल को संगम कहते हैं और इसी संगम क्षेत्र में प्रतिवर्ष माघ मेले का आयोजन होता है तथा हर बारहवें वर्ष यहाँ कुम्भ मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में लोग आते हैं। प्राचीन काल में भारद्वाज ऋषि के आश्रम और वर्तमान समय में इलाहाबाद विश्वविद्यालय इस स्थान को शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्व प्रदान करते हैं।
परिचय
[सम्पादन]प्रयागराज का प्राचीन नाम प्रयाग है। हिन्दू पुराणों के अनुसार त्रिदेवों में से एक ब्रह्मा जी द्वारा यहाँ प्रकृष्ट यज्ञ करने के कारण इसे प्रयाग नाम दिया गया बताया जाता है। प्राचीन काल में गंगा और यमुना नदियों के मिलन स्थल की यह भूमि ऋषियों की तपस्थली और शिक्षा का केंद्र थी। कहते हैं कि सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा ने स्वयं इसे तीर्थराज नाम दिया था। पुराणों में इसे गंगा और यमुना के अतिरिक्त (अदृश्य) सरस्वती नामक पौराणिक नदी, अर्थात् तीन नदियों का मिलन स्थल माना गया है और इसका उल्लेख वेदों, महाकाव्यों और पुराणों में भी प्रयाग के नाम से मिलता है। इसी कारण इसका एक अन्य नाम त्रिवेणी या त्रिवेणी संगम भी है।
इसका पूर्व नाम इलाहाबाद मुगल सम्राट अकबर द्वारा दिया गया बताया जाता है जिन्होंने १५७५ में यहाँ की यात्रा की और एक किले का निर्माण करवाने का आदेश दिया। हालाँकि, कुछ इतिहासकार इस शहर के ठीक विपरीत गंगा के दूसरे किनारे पर वर्तमान झूंसी उपनगरीय क्षेत्र को प्राचीन प्रतिष्ठान पुर के नाम से पहचान करते हैं और यहाँ के चंद्रवंशी राजा पुरुरवा द्वारा अपनी माता इला के लिए एक आश्रम संगम क्षेत्र में बनवाने की बात बताते हुए यह स्थापित करते हैं कि इसका एक नाम इलावास पहले से प्रचलित था जिसे अकबर ने परिवर्तन के साथ इलाहाबाद कर दिया।
तब से लेकर अब तक, यहाँ नगर धार्मिक महत्त्व के साथ साथ एक विद्या और राजनीति और सामरिक महत्त्व के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थित है। शहर सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक इतिहास की धरोहर इस शहर से संबंधित लोगों में विद्वान (मेघनाद साहा, हरीशचंद्र, गंगा नाथ झा, अमरनाथ झा) लेखक (रामकुमार वर्मा, अमरकांत, उपेन्द्रनाथ अश्क, जगदीश गुप्त), कवि (सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला", "फ़िराक़" गोरखपुरी, महादेवी वर्मा, हरिवंशराय बच्चन), राजनीतिज्ञ (मदन मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, मुरली मनोहर जोशी) और चिन्तक (पुरुषोत्तम दास टंडन) तथा प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के नाम आते हैं।
यहाँ भारत का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय - इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्थित है। भारत के कुछ अत्यंत प्रतिष्ठित संस्थानों में गिना जाने वाला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT) तथा संस्कृत के अध्ययन के लिए समर्पित गंगानाथ झा शोध संस्थान यहाँ के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान हैं।
अस्सी के दशक तक इसका एक उपनगरीय क्षेत्र (नैनी) उद्योगों का एक प्रमुख संकुल था। हालाँकि, यहाँ स्थापित कई पब्लिक सेक्टर के कारखाने बंद होने के कारण इसके औद्योगिक महत्त्व में कमी आई है। नैनी में ही सैम हिगिसबॉटम इन्स्टीट्यूट मौजूद है जो विभिन्न विषयों में शिक्षा प्रदान करता है।
वर्तमान में प्रयागराज प्रगति के पथ पर धीरे-धीरे अग्रसर एक महत्त्वपूर्ण नगर है।
वातावरण
[सम्पादन]प्रयागराज का मौसम फरवरी से अप्रैल तक और सितम्बर से दिसम्बर के बीच अत्यंत सुहाना रहता है और यात्रा के लिये सबसे अच्छा है। दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह और जनवरी का महीना काफ़ी ठंडा होता है। जनवरी के प्रथम दो सप्ताहों में न्यूनतम तापमान 5° C से भी नीचे तक गिर सकता है। चूँकि, संगम क्षेत्र में लगने वाला माघ मेला इसी जनवरी महीने में लगता है, यदि आप इस दौरान प्रयागराज की यात्रा करने की योजना बना रहे तो पर्याप्त गर्म कपड़ों के साथ यहाँ आयें।
इसके उलट मध्य अप्रैल के बाद गर्मी काफी पड़ती है जो मध्य जून तक जारी रहती है जब तक मानसून न आ जाए। इस दौरान दिन में गर्म तेज हवायें चलती हैं जिन्हें "लू" कहा जाता है और अधिकतम तापमान 45° C तक भी पहुँच सकता है। मानसून आने के बाद तापमान में अवश्य कुछ कमी आती है, लेकिन उमस बढ़ जाती है। अगस्त महीने में सर्वाधिक बारिश होती है।
कैसे पहुँचें ?
[सम्पादन]रेल द्वारा
[सम्पादन]अगर आप भारत के बाहर से यहाँ आ रहे हैं तो हैं तो सबसे अच्छा विकल्प है दिल्ली तक हवाईजहाज से यात्रा करना और वहाँ से प्रयागराज के लिये रेल पकड़ना। दिल्ली से इलाहाबाद जाने के लिए प्रयागराज एक्सप्रेस (ट्रेन नं 2418) सबसे अच्छी रेल है। यह नई दिल्ली स्टेशन से रात में 21:30 पर खुलती है और सुबह प्रयागराज पहुँचाती है।
भारत के अन्य शहरों से प्रयागराज पहुँचने के लिए काफी रेलगाड़ियाँ उपलब्ध हैं। मुम्बई से प्रयागराज आने के लिए दोरंतो एक्सप्रेस सर्वोत्तम है। मुंबई-मुगलसराय मार्ग की काफी सारी रेलगाड़ियाँ उपलब्ध हैं हालाँकि यह ध्यान रखें कि इनमें से कई प्रयागराज शहर में प्रवेश नहीं करती बल्कि एक नए विकसित किये जा रहे स्टेशन छिवकी तक ही जाती हैं। रात के समय यहाँ से प्रयागराज पहुँचने में समस्या हो सकती है।
प्रयागराज में पाँच रेलवे स्टेशन मुख्य शहर में स्थित हैं: प्रयागराज जंक्शन, प्रयागराज रामबाग, प्रयाग स्टेशन, प्रयागघाट स्टेशन, और दारागंज स्टेशन। उपांत इलाकों में सूबेदारगंज, और बम्हरौली स्टेशन कानपुर की ओर से जाने पर प्रयागराज से पहले पड़ते हैं किन्तु ज्यादातर रेलगाड़ियाँ यहाँ नहीं रुकतीं। छिवकी स्टेशन, यमुना पार इलाके में है जिसे एक बाहरी टर्मिनल के रूप में विकसित किया जा रहा। यहाँ उतर कर प्रयागराज पहुँचने के लिए सिटी बसें और टैम्पो उपलब्ध हैं, व्यस्त घंटों में मुख्य शहर पहुँचने में आधे घंटे से अधिक का समय लग सकता है।
सड़क मार्ग से
[सम्पादन]प्रयागराज प्राचीन समय की ग्रैंड ट्रंक रोड पर पड़ता है, इसे वर्तमान में विकसित करके चार लेन का दिल्ली-कोलकाता मार्ग निर्मित किया गया है और यात्रा के लिए अच्छी सड़क सुविधा है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम उत्तर प्रदेश के कई शहरों से प्रयागराज के लिए बसें चलाता है। लखनऊ और वाराणसी से प्रयागराज के लिए काफी अच्छी बस सुविधा उपलब्ध है। रीवां, जबलपुर और नागपुर इत्यादि शहरों से रात में चलने वाली प्राइवेट बसें भी यहाँ पहुँचने का अच्छा साधन हैं।
हवाई जहाज से
[सम्पादन]प्रयागराज में बम्हरौली एयरपोर्ट पर नागरिक विमान उतरते हैं, हालाँकि यह मूल रूप से सैन्य हवाई अड्डा है। दिल्ली और मुंबई से सीमित उड़ानें उपलब्ध हैं। बम्हरौली उतर कर शहर पहुँचने के लिए पहले से टैक्सी बुक करा लेना बेहतर विकल्प है क्योंकि पब्लिक परिवहन सेवा यहाँ से उपलब्ध नहीं है।
हवाई जहाज से प्रयागराज पहुँचने के लिए एक विकल्प यह भी है कि आप लखनऊ या वाराणसी तक हवाई जहाज से पहुँचे और वहां से टैक्सी द्वारा प्रयागराज जाएँ।
शहर में आवागमन
[सम्पादन]शहर के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने के लिए सबसे बेहतर विकल्प ई-रिक्शा या सामान्य साइकिल रिक्शा है। आंतरिक परिवहन के लिए सिटी बसें भी काफी चलती हैं, हालाँकि यदि आप नितांत अपरिचित हैं तो इनके मार्ग समझने में दिक्कत हो सकती है। दो प्रमुख बस रूट: शांतिपुरम-रेमंड गेट (नैनी) (उत्तर-दक्षिण) और त्रिवेणीपुरम (झूसी)-बम्हरौली (पूरब-पच्छिम) हैं। इनमें से दूसरा रूट रेलवे जंक्शन और मुख्य बस अड्डे (सिविल लाइंस) से हो कर गुजरता है, जबकि पहला रूट आनन्द भवन और संगम से पास (अलोपी चुंगी) से होकर गुजरता है।
देखें
[सम्पादन]कुंभ मेला
[सम्पादन]शहर के संगम क्षेत्र में प्रतिवर्ष माघ के महीने में माघ मेला और हर बारहवें वर्ष कुंभ मेला का आयोजन होता है। हिन्दू रीति रिवाजों और धार्मिक परम्पराओं को करीब से देखना हो तो यह समय इस क्षेत्र में गुजारना एक अच्छा विकल्प प्रस्तुत करता है। पूरे देश से संत-महात्मा और श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। वर्ष 2001 का कुंभ मेला अब तक का, दुनिया का सबसे बड़ा जनसमागम था।
मेले की शुरूआत दिसंबर के अंत में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष पूर्णिमा से होती है। इस दिन प्रथम स्नान पर्व होता है। इसी दिन से श्रद्धालु "कल्पवास" का आरम्भ करते हैं जो संगम के इलाके में तम्बुओं के शिविरों में एक माह का धार्मिक प्रवास है। मेले का अंत माघ महीने की पूर्णिमा को होता है जो जनवरी में पड़ता है। इस दौरान अन्य शाही स्नान पर्व हैं - मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी। कुंभ मेले के समय (बारहवें वर्ष लगने वाला) यह मेला महाशिवरात्रि तक चलता है।
इस पूरे मेले के दौरान गंगा और यमुना के संगम क्षेत्र में तम्बुओं और अस्थाई निवासों तथा मंडपों के द्वारा एक नगर सा बस जाता है। रात भर रौशनी की कतारों के बीच भ्रमण किया जा सकता है और प्रातः काल स्नान और संध्या के समय विभिन्न मंडपों में सत्संग, प्रवचनों और भजन कीर्तन में शामिल हुआ जा सकता है।
दशहरा
[सम्पादन]इस खूबसूरत शहर में दशहरा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शहर के हरेक हिस्से में रामलीला का आयोजन होता है। यहाँ "पथरचट्टी" की रामलीला विशेष रूप से देखने योग्य है।
नवरात्र के नौ दिनों में अलग-अलग दिन शहर के अलग-अलग हिस्सों में मेले का आयोजन किया जाता है। इनमें छठवें दिन दारागंज मोहल्ले का मेला प्रसिद्ध है। यह मेला रात भर चलता है और इसका प्रमुख आकर्षण "काली नृत्य" है जो अवश्य देखना चाहिए।
प्रयागराज में बंगाली समुदाय के काफी लोग निवास करते हैं और दुर्गापूजा एक विशेष अवसर होता है। पूरे शहर में इन दिनों उत्साह का माहौल होता है। नवरात्र के नवें और अंतिम दिन तथा दशहरे के दिन चौक इलाके में मेला लगता है। बड़ी संख्या में लोग मेले में घूमने आते हैं और देर रात तक झाँकियों का अवलोकन करते हैं।
संगम
[सम्पादन]गंगा यमुना और पौराणिक सरस्वस्ती नदियों का मिलन स्थल त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। यह पर्याप्त विस्तृत नदी के कछार (बलुआ भूमि का विस्तार) वाला क्षेत्र है। यह स्थान हिन्दू धर्म मानने वालों के लिए पवित्र है और पूरे देश से लोग यहाँ पवित्र स्नान करने आते हैं। वर्ष भर यहाँ पंडों की चौकियाँ लगी रहती हैं और लोग स्नान करते हैं। नाव द्वारा नदियों के मिलन स्थल का अवलोकन भी एक प्रमुख आकर्षण है।
हर वर्ष माघ महीने में यहाँ माघ मेले का और हर बारहवें वर्ष कुंभ मेले का योजन होता है। इसके अलावा कार्तिकी पूर्णिमा इत्यादि विशेष अवसरों पर भारी संख्या में लोग पवित्र स्नान करने आते हैं।
प्रतिदिन संध्या के समय गंगा आरती में शामिल होने भी काफी संख्या में लोग आते हैं। समीप ही लेटे हनुमान जी का मंदिर है जिन्हें एक प्रकार से इस शहर का नगर देवता माना जाता है। संगम के समीप ही अकबर का बनवाया किला चार सौ साल पुराना किला है। किले के अंदर पातालपुरी मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण अहि और मान्यता अनुसार कभी नष्ट न होने वाले अक्षयवट वृक्ष की पूजा की जा सकती है।
भवन और स्थापत्य
[सम्पादन]- 1 आल सेंट्स कैथेड्रल (पत्थर गिरजा), सिविल लाइंस आल सेंट्स कैथेड्रल, जिसे वास्तुकार विलियम इमर्सन (जिनके द्वारा कलकत्ता का विक्टोरिया मेमोरियल भी डिजाइन किया गया था) पूरी तरह गोथिक शैली में निर्मित एक गिरजाघर है जो 1877 में बनकर तैयार हुआ। सिविल लाइंस में महात्मा गाँधी मार्ग और सरोजनी नायडू मार्ग के कटान वाले चौराहे पर एक बड़े गोल घास के मैदान में स्थित यह गिरजा सफेद पत्थर और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक सुन्दर भवन है। फर्श का निर्माण विशुद्ध जयपुरी संगमर्मर से हुआ है।
स्थानीय लोग इसे पत्थर गिरजा के नाम से पुकारते हैं और यह भारत के कुछ सबसे पुराने चर्चों में से एक है।
- 2 क़िला इलाहाबाद किला, 1583 में जिसका निर्माण अकबर ने शुरू करवाया, दोनों नदियों के संगम पर स्थित है। यह अकबर के बनवाये कुछ बड़े किलों में शुमार किया जाता है, और भले ही इसका मूल रूप बाद के जीर्णोद्धार के कारण कुछ बदल गया हो, ज़नाना महल की खूबसूरती अब भी बरक़रार है। किले के अंदर सुंदर लॉन और बारादरी हैं।
किले की पूर्वी दीवार के बाद संगम क्षेत्र शुरू होता है जहाँ कुंभ मेला लगता है, इसी ओर से एक दरवाजा किले में पहुँचने के लिए भी है जिसे जिससे अंदर जाने पर पौराणिक अक्षयवट, कभी नष्ट न होने वाला बरगद का पेड़, है जहाँ श्रद्धालु पूजा करने जाते हैं। किले के मुख्य दरवाजे से अंदर प्रवेश करने पर 35 फीट ऊँचा, अशोक स्तंभ है जो बलुआ पत्थर का बना हुआ है ख़ूबसूरती से पॉलिश किया हुआ है। इस पर अशोक और बाद के कई शासकों के द्वारा लिखवाये गए सन्देश मौजूद हैं। अंग्रेजी शासन के दौरान ही किले में सेना की छावनी और शस्त्रागार बनाया गया था और अभी तक किले का ज्यादातर हिस्सा सेना के अधिकार में है जिसके कारण पूरे किले में नहीं घूमा जा सकता और जिन सीमित जगहों तक जा सकते हैं वहाँ के लिए भी पहले से आज्ञा लेनी होती है।
- आनन्द भवन नेहरू-गाँधी परिवार का घर, जिसे अब संग्रहालय के रूप में संरक्षित किया गया है। इसका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- 3 इलाहाबाद उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) उत्तर प्रदेश का उच्च न्यायालय है। गोथिक शैली के मिश्रण युक्त शैली में निर्मित भवन देखने योग्य है।
- 4 नया यमुना पुल शहर के दक्षिणी छोर पर, यमुना नदी के ऊपर बना यह पुल शहर को नैनी उपनगरीय क्षेत्र से जोड़ता है। पुल अपने आप में भी देखने लायक है और पुल पर बने पैदल एवं साइकिल पथ पर चहलकदमी करते हुए यमुना नदी और सरस्वती घाट का नजारा लिया जा सकता है।
- 5 खुसरू बाग़ 08:00-20:00. शहर के पश्चिमी हिस्से में मौजूद ऊँची चारदीवारी के अंदर ख़ूबसूरत बाग़। इसका मुख्य दरवाजा दक्षिण ओर ग्रैंड ट्रंक रोड पर खुलता है और लगभग 60 फीट ऊँचा है। बाग के अंदर चार मकबरे हैं। खुसरू बादशाह शाहजहाँ का बड़ा भाई था जिसे यहाँ दफनाया गया है। अन्य दो मकबरे खुसरू की माँ और बहन के हैं, एक अन्य भवन नामालूम व्यक्ति, तमोलन के मकबरे के रूप में प्रसिद्ध हैं हालाँकि इसमें कोई कब्र नहीं है। बाग़ में विविध प्रकार के फलदार पेड़ हैं जिनमें प्रयागराज के अमरूदों का विशिष्ट स्थान है। इसे सरकार द्वारा इको नॉलेज पार्क के रूप में विकसित किया जा रहा है। दोपहर में कुछ देर के लिए दरवाजे बंद रहते हैं।
- इलाहाबाद विश्वविद्यालय कैम्पस भारत का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। इंडो-सारसेनिक शैली में बने भवन देखने योग्य हैं। जंतुविज्ञान विभाग में जन्तुवैज्ञानिक संग्रहालय में हाथी और मैमथ के कंकाल तथा टिड्डों और तितलियों के सैकड़ों नमूने देखने योग्य हैं।
- 6 जमुना पुल यह पुराना पुल है जिस पर अब भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित है। साइकिल से या पैदल इस पुल पर संध्या के समय गुजरना अच्छा अनुभव है।