शिरडी

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शिर्डी(शिरडी) का नक्शा

भारत के महाराष्ट्र राज्य, शिरडी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। अहमदनगर महाराष्ट्र का एक जिला और शिरडी उसका छोटा सा शहर है। साईं बाबा की पूजा और दर्शन करने के लिए हर दिन हजारों लोग शिरडी जाते हैं। यहाँ के स्थानीय लोग बोलने के लिए मराठी भाषा इस्तेमाल करते हैं, जो कि उनका मतृभाषा हे। लेकिन हर कोई हिन्दी और अंग्रेजी भाषा बोल और समझ सकते है। शिरडी को मराठी भाषा में 'शिर्डी' कहा जाता है यह बेहद प्रसिद्ध छोटे शहर है जिसके जनसंख्या बहुत कम है। शिरडी तीर्थयात्रिओं का सपनों का शहर है। यहाँ श्रद्धालु साल में कई दफे बारम्बार आते रहते हे और यह सहर तीर्थयात्रियों से भरा रहता हे।

परिचय[सम्पादन]

शिरडी अहमदनगर जिले के एक छोटा सा शहर है, जो महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। यह अरब सागर के तटरेखा की निकटता में स्थित है। २०११ में दर्ज भारतीय जनगणना के अनुसार, इसकी जनसंख्या केवल ३६,००४ थी। इस जगह की साक्षरता दर ७०% है। सदियों से यह विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थान लाखों अनुबृत भक्तों द्वारा अनुभव किया गया है। इस जगह का आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र पवित्र संत साईं बाबा है। यह देखा गया है कि १९१८ तक साईं बाबा इस जगह में रहते थे। साईं इस जगह पर अपनी समाधि लीये थे। रोजाना यहाँ बाबा की दर्शन के लिए २८,००० श्रद्धालु आतें हे, और त्योहारों और छुट्टियों के दौरान, ५,००००० से भी अधिक भक्त इस पवित्र स्थान पर जाते हैं।


अन्य जानकारी[सम्पादन]

इतिहास[सम्पादन]

शिर्डी अर्थात शिरडी का अर्थ तमिल में 'समृद्धि का पैर' होता है, यह तमिल शब्दावली से प्राप्त किया गया है। यह दो शब्द 'सीर् + अडी' का योग से बनी है। यह एक छोटा सा शहर है जिसकी जनसंख्या ३६,००४ है, जैसा कि २०११ में जनगणना द्वारा दर्ज की गई थी। शिरडी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है। यहां बोली जाने वाली भाषा मराठी है।

यह स्थान संत योगी श्री साई बाबा के लिए प्रसिद्ध हे। वह १८५८ में शिरडी को स्थायी रूप से वापस आके यह स्थान को एक पवित्र स्थान में बदल दिए थे। वह पैंच साल तक एक नीम के पेड़ के निचे दयँ और तपस्या करते थे। नीम की निचे की खोदाई करने के लिए बाबा ने आदेश दिया था। ग्रामीणों ने बाबा के शब्दों का पालन किया और इसे खुदाई शुरू कर दिया। जेसे ही पृथ्वी की परत मिटी निकल गये, उन्हें पत्थर से बना एक स्लैब मिला, तेल और वायु के बिना जलने वाली दिया जो की चमक भी रही थी और जो विज्ञान के बिल्कुल विपरीत थी। उसी जगह में उन्हें एक कटोरी या बर्तन मिला जो एक लकड़ी की मेज पर गाय के मुंह के आकार में थी। बाबा ने स्पष्ट किया कि यह पवित्र स्थान है जहां उनके गुरु ने तपस्या की थी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मुझे (सई बाबा) की पूजा करने के बजाय, पेड़ की पूजा करें और इसे अछूता छोड़ दें। आज तक कोई भी इसे छुआ नहीं था यह वृक्ष शिरडी में तीर्थयात्री का पहला स्थान है। साई बाबा लोगों की हर तरीके से मदद करते थे और उनकी ही लिए यह स्थान विश्व भर में प्रसिद्धि हासिल किया हे।

मौसम[सम्पादन]

शिरडी का मौसम न्यूनतम २० डिग्री से अधिकतम ४० डिग्री तक बढ़ जाता है। इसके अलावा तापमान ३० डिग्री तक गिर जाता है और मानसून के दौरान ३५ डिग्री पर रहता है।


परिवहन[सम्पादन]

शिरडी तक पहुंचने के लिए यह बहुत सारे आसान यातायात सुविधाएँ उपलब्ध हे। इनमे बायुमार्ग, रेलमार्ग, और सड़कमार्ग शामिल हे। यहाँ विश्व की सारे देशों से भक्त आतें हे, इसीलिए यह जगा हर तरके की परबहान और यातायात सुविधाएं उपलब्ध हे।

बायुमार्ग[सम्पादन]

शिरडी पहुँच ने के लिए, बायुमार्ग का उपयोग करके दुनिया भर की लोग यहाँ आतें हे। एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर से लगभग १४ किलोमीटर दूर शिर्डी के पास काकाडी गांव में स्थित है। लोगों को हवाई अड्डे से शहर तक पहुंचने के लिए परिवहन आसानी से मिलता है। सीधे बिमान द्वारा यहाँ दिल्ली, मुंबई, और हैदराबाद जैसे शहरों से यात्रा कर सकतें हे।

रेलमार्ग[सम्पादन]

शहर में एक रेलवे स्टेशन उपलब्ध है, जिसे साईनगर शिरडी रेलवे स्टेशन कहा जाता है। अपनी सुविधा के अनुसार अधिकतम लोग रेल परिवहन का उपयोग करते हैं। हालांकि, श्रद्धालु अपने आरामदायक यात्रा के लिए 'कोपर गाओं' और 'मनमाड' नाम वाले अन्य दो स्टेशनों का उपयोग करते हैं। शिरडी स्टेशन में रेल यातायात की अधिक से अधिक सुवधाएं बढ़ई जाती रहती हे. यहाँ पे सीधे रूट माध्यम से लगभग हर राज्य से रेल गाड़ियां आती जाती रहती हे जो की प्रमुख सहरो को जोड़ती हे. इसमें मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, और कोलकाता शामिल हे. इसके अलावा हैदराबाद, काकीनाडा पोर्ट, सिकंदराबाद, त्रिपुरा, जलना, कालका जैसे स्थान शामिल हे. कॉपर गाँव और मनमाड के लिए दिल्ली, पंजाब, कर्णाटक, लक्ष्द्वीप, जम्मू, अमृतसर, गोवा, कालका जैसे स्थानों से जय्यत की पूरा सुविधा हे.

सड़कमार्ग[सम्पादन]

कोपर गाँव रेलवे स्टेशन से शिरडी मात्रा १७.७ किलोमीटर की दुरी पे हे और इसे लगभग ३० मिनट की देरी से बस, कार और अन्य सड़क परबहन से पूरा किया जाता हे। कोपरगांव - शिर्डी / शिरडी की दुरी पूरी करने के लिए - अहमदनगर - पुणे राजमार्ग / मनमाड रोड / सोलापुर - धुले राष्ट्रीय राजमार्ग के माध्यम से जाना पड़ता हे। इसी तरह मनमाड से शिरडी पहुँच ने के लिए लगभग १ घंटा २० मिनट की यात्रा होती हे। यह सड़क माध्यम से ५७.७ किलोमीटर दूर पे हे, जिसे मनमाड रोड / सोलापुर - धुले राष्ट्रीय राजमार्ग के माध्यम से पूरा कर के शिरडी पहुँच सकते है।

इसके अलावा सड़क मार्ग की प्रयोग करके दूर दूर से लोग टोली में भी आते हे। शिरडी को बहुत से सारे शहरों आने जाने की बस सुविधा हे, जिसमे दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, इंदौर, हैदराबाद शामिल हे। शिरडी अहमदनगर-मनमाड राजमार्ग पर स्थित है और सड़क से नासिक, मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कार की माध्यम से शिरडी की यात्रा काफी दिलचस्प हे। शिरडी नासिक से ७५ किलोमीटर, औरंगाबाद से १३० किलोमीटर, पुणे से १५७ किमी और मुंबई से २५० किलोमीटर दूर है।

पर्यटन स्थल[सम्पादन]

शिरडी एक आध्यात्मिक स्थल होने की कारण यह स्थान भक्त और पर्याटको के लिए महत्वपूर्ण हे। यह प्रधान रूप से साई बाबा के लिए प्रसिद्ध हे और इसके अलावा यहाँ गुरुस्तान, समाधी मंदिर, द्वारकामाई, शनि सिगनापुर जैसे और भी पर्यटन स्थल हे। रेहने के लिए यहाँ बहुत सारे होटल उपलब्ध होने के साथ अनेक धर्मशाला और गेस्टहाउसे महजूद हे। खाने के लिए साई बाबा की निशुक्ल लंगर की प्राबधान होने की साथ रेस्टुरेन्ट् भी हरदम खुला रहता हे।

  • श्री साई बाबा संस्थान मंदिर - यह साई बाबा की प्राचीन मंदिर हे जिसे श्री साई बाबा संस्थान मंदिर कहा जाता हे। यह मंदिर साईं बाबा को समर्पित है। माना जाता है कि साईं बाबा को अभूतपूर्व शक्तियां मिली हैं, और उन्हें श्री साई बाबा संस्थान मंदिर में भगवान अवतार के रूप में पूजा की जाती है। मंदिर परिसर लगभग २०० वर्ग मीटर के कुल क्षेत्र में फैला हुआ है और शिरडी गांव के दिल में स्थित है। यह दुनिया भर से भक्तों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और प्रत्येक दिन औसतन ८०,००० भक्तों का दौरा किया जाता है। त्योहारों और कुछ विशेष अवसरों पर, संख्या प्रति दिन ५,००,००० भक्तों तक बढ़ जाती है।
  • द्वारकामाई - यह साई बाबा मंदिर से मात्र ३०० मीटर की दुरी पे पिंपलवाड़ी रोड, राहता में है। जिस स्थान पर महान साईं बाबा ने अपने अंतिम क्षणों सहित अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बिताया था, उसे द्वारकामाई कहा जाता हे। साई बाबा इस धरती के भगबान हे, यह स्थान बाबा की घर था इसीलिए यह भक्त और श्रद्धालुओं के लिए खजाना जैसे हे। द्वारकामाई को शिरडी के दिल माना जाता हे। द्वारकामाई भक्तों के लिए शिरडी के खजाने में से एक है। वे कहते हैं कि द्वारकामाई शिर्डी का दिल है, यह बाबा के सभी भक्तों के लिए खजाना है क्योंकि यह उनका घर था, क्योंकि उन्हें पृथ्वी पर भगवान कहते हैं। द्वारकामाई पहले एक छोटा सा मस्जिद हुआ करता था, इसे बाबा ने बदल दिया था। जिसमे एक मंदिर हे जो की भक्तो की पूजा स्थल हे। इसी जगह बाबा ने 'सब का मालिक एक हे' दोहराते थे। यह स्थान इतनी पवित्र हे के इसमें प्रवेश मात्र ही इंसान सभी कष्ट, दुख, और पापों से मुक्त होने का एहसास करता हे। साई बाबा की यह पवित्र स्थान भक्तों की दिल और आत्मा को सुद्ध करती हे।
  • समाधी मंदिर - साई बाब की मंदिर से यह महात्मा गांधी रोड / रिंग रोड के माध्यम से ३३ मिनट की अबधि में ९.४ किमी की दूर समाधी मंदिर स्थित हे. समाधि मंदिर को नागपुर से एक करोड़पति द्वारा निर्मित किया गये था। जो साई बाबा के प्रफुल्लित भक्त थे। भक्त भगवान मुरलीधर की मूर्ति स्थापित करना चाहते थे और इसलिए साईं बाबा ने खुद को एक के रूप में घोषित किया। मंदिर को खूबसूरती से सफेद संगमरमर से बना है, दो बड़े खंभे के बीच आभूषणों से अलंकृत किया गये हे।
  • गुरुस्थान - यह जगह कोपरगांव में स्थित है जो शिर्डी के मुख्य शहर से लगभग १४ किमी दूर है। जिस जगह पे साईं बाबा पहले १६ साल के उम्र में एक लड़के के भांति दुनिया में दिखाई दिए थे, इस स्थान को गुरुस्थान कहा जाता हे। यह जगह नीम के पेड़ के नीचे स्थित है। इसमें एक मंदिर भी है जिस पर साईं बाबा के चित्र शिवलिंगम और नंदी बुल के सामने रखा जाता है। गुरुस्थान का मतलब है- शिक्षक की स्थान, भक्तों का सचमुच विश्वास है कि इस जगह पर धूप लगाई जाती है जिससे वे सभी बीमारियों का इलाज होती हे।
  • शनि शिंगणापुर - अहमदनगर जिले का शानदार और अनोखा शनि शिंगणापुर मंदिर, यह शिरडी साई बाबा मंदिर से ७५ किलोमीटर दूर हे। यहाँ पहुँच ने के लिए कोई बस यातायात सुविधा नहीं हे पर निजी गाडी के प्रयोग और सम्मिलित किराये की बाहन की सुविधा हे। यह जगह जादुई और शक्तिशाली भगवान शनी के लिए प्रसिद्ध है, जो एक काले पत्थर में रहते हैं। शनि ग्रह को प्रतीक वाले हिंदू भगवान को स्वयंभू के रूप में जाना जाता है, जो एक काले पत्थर में अन्तर्निहित हे, जिसका कोई वास्तुशिल्प सौंदर्य नहीं है, और भगवान की आध्यात्मिक चमक के साथ साधारण पत्थर हर साल कई भक्तों को फल देता है। शनि भगवान के लोगों का भरोसा इतना मजबूत है कि चमत्कारिक गांव में घरों में से कोई भी दरवाजे और ताले नहीं है। लोग मानते हैं कि भगवान शनि उनके चोरों से अपने क़ीमती सामानों की सुरक्षा कर रहे हैं। लोगों को भगवान के लिए भक्ति और प्यार के स्तर को देखकर आश्चर्यचकित होता है। शनिवार, अमावस्या और श्री शानेश्वर जयंती जैसे कुछ सबसे पवित्र दिवसों पर, ज्यादा भीड़ रहती हे। भगवान शनी की पूजा करने के लिए उन्हें खुश करने से किसी के भी जीवन सुखमय होता हे. यह शनि ग्रह के प्रभाव को दुर्भाग्य माना जाता है।